Book Title: Prachin Jain Itihas 01
Author(s): Surajmal Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 25
________________ s प्राचीन जैन इतिहास | (९) अवनति काल पूरा हो जानेपर ( अवसरी काल पूरा हो नानेपर ) उन्नति रूप परिवर्तनका प्रारंभ होता है । इनके भी छह माग होने है । इसके पहिले भागका नाम दु.षमादु घमा, दूसरा दुषमा, तीसरा सुषमादुपमा, चौथा दुपमासुपमा, पाचवां सुषमा और छठवा सुषमासुपमा होता है। इनसे क्रमश आयु काय सुःख दुःख उसी तरह बढते जाते है जिस तरह अवनति कालमें घटते थे । अवनति कालके छठवें भागमें जैसा कुछ समय रहता है वही उन्नतिके पहिले भागमें होता है और पहिले भागमै जो होता है वह उन्नतिके छटवें भागमें होता है । इस प्रकार आर्यखण्ड में समयका परिवर्तन होता है । वर्तमान समय अवनति रूप परिवर्तनका पाचवा हिस्सा है-पंचम काल है । इनके पहिले चार काल और पूरे हो चुके है । यह बताया जा चुका है कि यो तो इतिहास की शुरू प्रत्येक परिवर्तनक प्रारंभसे ही होती है परन्तु तीसरे कालके अंतमें जब एक पल्य शेष रहता है तब उस पल्पके आठ भागों में से सात भागोंके पूरे होने तक तो मनुष्यों के जीवन निर्वाहके लिये कोई व्यापारादि कृत्य, समाज-संगठन व राज्य - संगठनकी आवश्यकता न होनेके कारण उस समयका इतिहास नहीं कहला सकता । प्रकृत इतिहा सका प्रारंभ तीसरे भागके अंतिम परपके अंतिम हिस्से - भाठवे हिस्सेसे होता है यही आर्यखंडके इतिहासका प्रारंभिक काल है । आगे पाठोंमें यहींसे इतिहासका प्रारंभ किया जायगा ।

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