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२१ प्राचीन जैन इतिहास! (१) पहिलेके प्रतिश्रुति, सन्मति, क्षेमकर, क्षेमधर, सीमंकर इन पांच कुलकरोंने दोष होनेपर केवल " हा " इस प्रकार पश्चाताप रूप बोलदेना ही दड रक्खा था ।
(२) सीमंधर, विमच्वाहन, चक्षुष्मान, यशस्वान्, अमिचन्द्रःइन पांचोंने “हा, मा " इस प्रकार दो शब्दों का बोलना ही दंड नियत किया।
(३) अतके चार कुलकरोंने " हा, मा, धिक " इस तरह दंडका विधान किया था।
पाठ पांचवा । चौदहवें कुलकर महाराजा नाभिराय और
कर्मभूमिका प्रारंभ। (१) तेरहवें कुलकरके कुछ समय बाद महाराजा नाभिराय हुए। ये चौदहवें कुलकर थे। इनके सामने कल्पवृक्ष प्रायः वष्ट हो चुके थे । क्योंकि तेरह कुलकरोंका समय भोगभूमिका था। 'जिस समयमें और जहा विना किसी व्यापार के भोगोपभोगकी सामग्री प्राप्त होती रहनी है उस समयको भोगभूमि कहने हैं। यह भोगभूमि महाराज नाभिरायके सन्मुख नष्ट हो गई और कर्मभूमिका प्रारम हुआ । अर्थात् जीविकाके लिये व्यापारादि आर्य करनेकी आवश्यकता हुई।
(२) इस समक्के लोग व्यवहारिक कृत्योंसे बिलकुल अपुरिचिा के खेती आदि करना कुछ नहीं जानते थे । और कल्पवृक्ष नष्ट हो ही चुके थे जिनसे कि भोजन सामग्री आदि प्राप्त हुआ