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प्रकाशकीय निवेदन
नयविमर्श-द्वात्रिंशिका नामक लघु ग्रन्थ का प्रकाशन 'प्राचार्य श्रीसुशीलसूरि जैनज्ञानमन्दिर' द्वारा करते हुए हमें अति आनन्द हो रहा है । शासनसम्राट्-परमपूज्याचार्यमहाराजाधिराज श्रीमद्विजयनेमिसूरीश्वरजी म. सा. के पट्टालंकार-साहित्यसम्राट्-परमपूज्याचार्यप्रवर श्रीमद् विजयलावण्यसूरीश्वरजी म० सा० के पट्टधर-कविदिवाकरपरमपूज्याचार्यवर्य श्रीमद् विजयदक्षसूरीश्वरजी म. सा. के पट्टधर जैनधर्मदिवाकर पूज्यपादाचार्यदेव श्रीमदविजय सुशीलसूरीश्वरजी म. सा. इस लघुग्रन्थ के तथा इसके हिन्दी पद्यानवाद-भावानुवाद-सरलार्थ के कर्ता हैं। नयों के प्रारम्भिक ज्ञान की प्राप्ति के लिये यह लघुग्रन्थ सुन्दर और सरलभाषा में रचित है ।
इस ग्रन्थ का सम्पादन परमपूज्य आचार्यदेव गुरुभगवन्त के शिष्यरत्न विद्वान व्याख्याता पूज्य मुनिराजश्री जिनोत्तमविजयजी म. सा. ने बड़ी सुन्दर रीति से किया
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