Book Title: Nayvimarsh Dwatrinshika
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

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Page 34
________________ घड़ा है, यह भी घड़ा है। इस प्रकार की ऐक्य प्रतीति घड़ों में होती है । जनसम्मर्द में सारे ही मनुष्य हैं; यह एक सामान्य दृष्टिकोण है किन्तु यह गुर्जरदेशीय है, यह राजस्थानीय है इत्यादि विशिष्ट दृष्टिकोण विशेषताओं की पृथक्ता के कारण ही विभक्त करता है । यह घड़ा छोटा है, बड़ा है, ग्रहमदाबाद का है या पारण का है, ये कुछ विशेषधर्मी विशेषताएँ होती हैं । ; सामान्य की सत्ता विशेष की सत्ता नहीं हो सकती, अर्थात् सामान्य से भिन्न विशेष नहीं हो सकता तथा विशेष भी सामान्य से युक्त ही होता हैं ॥ ४ ॥ [ ५ ] नैगमनयस्वरूपम् - [ उपजातिवृत्तम् ] स्वविशेषधर्म. सामान्यधर्म वस्तूभयं वक्ति च नैगमोऽयम् । सामान्यधर्मो न विना विशेषं, विशेषधर्मोऽपि न तद् विना स्यात् ॥५॥ अन्वय : 'अयं नैगमः वस्तूभयं सामान्यधर्मं स्वविशेषधर्मं वक्ति, नयविमर्शद्वात्रिंशिका - १३

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