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( १२ )
ऋजुसूत्रनयस्य स्पष्टीकरणम्
[ उपजातिवृत्तम् ] भूतेन कार्यं न भविष्यताsपि,
परेण वा सिद्ध्यति वस्तुना न । स्वार्थ स्वकीयेन सता च वस्तुना, प्राप्नोति भिन्नं गगनस्य पद्मम् ॥१२॥
सरलार्थ
ऋजुसूत्रनय का स्पष्टीकरण
भूत अर्थात् बीता हुआ, भविष्य अर्थात् होनेवाला तथा परकीय वस्तु से कार्यों की सिद्धि नहीं होती है, कार्य तो केवल वर्त्तमान एवं स्वकीय वस्तु से ही होता है । अतः यह ऋजुसूत्रनय भूत तथा भविष्यत् को मान्यता नहीं देता है, मात्र वर्तमान की ही अपेक्षा रखता है, इसके लिए भूत और भविष्यत् तो प्रकाशपुष्प की तरह निरर्थक हैं ।। १२ ।।
( १३ )
ऋजुसूत्रनयोऽग्र े तनाश्च केवलं भावं मन्यन्ते
[ इन्द्रवज्रावृत्तम् ]
नामादिनिक्षेपचतुष्षु भावं, निक्षेपमेकं खलु मन्यतेऽयम् ।
न स्थापनां नैव च नामद्रव्ये, मन्तजु सूत्रं परतस्त्रयोsपि ॥१३॥
नय विमर्शद्वात्रिंशिका- ७६