Book Title: Nayvimarsh Dwatrinshika
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

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Page 106
________________ (२) तेषां पट्टधराः स्याताः, ग्रन्थानकानुसर्जकाः । विज्ञाः साहित्यसमाजो, लावण्यसूरिशेखराः ॥२॥ सरलार्थ-- __उन्हीं के पट्टधर आचार्य श्रीलावण्यसूरीश्वरजी म. सा. प्रसिद्ध हैं, अनेक ग्रन्थों के रचयिता हैं, विज्ञ हैं और साहित्यसम्राट् हैं ॥२५॥ (३) तेषां पट्टधराः मुख्याः, धर्मप्रभावकाः बराः । शास्त्रविशारदाः दक्षाः, दक्षसूरीश्वराभिधाः ॥२६॥ सरलार्थ उन्हीं के प्रधान पट्टधर प्राचार्य श्रीदक्षसूरीश्वरजी म. सा. धर्मप्रभावक हैं, श्रेष्ठ हैं, शास्त्रविशारद हैं और दक्ष हैं ॥२६॥ नयक्मिर्शद्वात्रिशिका-८५

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