________________
( ४ ) तेषां पट्टधरः सोऽहं, ___ 'सुशीलसूरि' नामतः। जिनोत्तमादिशिष्याणां,
नयज्ञानाय हेतवे ॥२७॥
सरलार्थ
उन्हीं के प्रधान पट्टधर (मैं) सुशीलसूरि अपनी जिज्ञासावृत्ति एवं अध्ययन- स्वाध्याय से जिनोत्तमविजयादि शिष्यों के नय एवं तर्कशास्त्र के अध्ययनार्थ......॥२७॥
दिवसहस्रत्रयो त्रिंशत्
तमे वैक्रमिके वरे। माघे शुक्ला त्रयोदश्यां,
मेदपाटे बुधे दिने ॥२८॥
सरलार्थ--
विक्रम संवत् २०३३ माघ शुक्ला त्रयोदशी (महा शुद १३) को बुधवार के दिन मेदपाट-मेवाड़ में ... ॥२८॥
नयविमर्शद्वात्रिशिका-८६