Book Title: Nayvimarsh Dwatrinshika
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

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Page 96
________________ सरलार्थ पुनः पूर्वकथित बात को स्थिर किया जाता हैव्रण पर (जख्म पर) पट्टी बाँध दो, पाँव में लेप करो, आँख में अञ्जन लगायो, खाने को अमुक फल दो (इत्यादि), विशेषरूप में कहने पर ही सब सफल होता है, किया जाता है । अतः सामान्य धर्म को मानना ठीक नहीं । काम तो विशेष धर्म के द्वारा ही सिद्ध होता है ।।१०।। (११) ऋजुसूत्रनयस्वरूपम् [ उपजातिवृत्तम् ] भूतं भविष्यद् दिप्रकारवस्तु, _तुर्यो नयो वै ऋजुसूत्रनामा । न वेत्ति किन्त्बत्र प्रवत्तमानं, - जानाति यत् संप्रति वर्तमानम् ॥११॥ सरलार्थ ऋजुसूत्रनय का स्वरूप ऋजुसूत्र नामका यह चौथा नय वस्तु की भूत और भविष्यत् पर्याय को छोड़कर केवल वर्तमान पर्याय को ही मानता है क्योंकि व्यवहार में भूत और भविष्यत् पर्यायों की उपयोगिता नहीं है ।।११।। .. नयविमर्शद्वात्रिंशिका-७५

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