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विग्रह-व्युत्पत्ति जन्य अर्थ में प्रयुक्त हुअा जो शब्द है उसी को एवंभूत नय मानता है, अन्य को नहीं ।।१७।।
(१८) व्यतिरेकदृष्टान्तेनास्य दृढ़ीकरणम्--
[ उपजातिवृत्तम् ] स्वविग्रहाद भिन्नमथास्ति वस्तु,
शब्दे न यत्रास्य घटेत भावः। तदा पटे किं न घटप्रयोगो,
वो भूयते तद् वद हे सुविज्ञ ॥१८॥ सरलार्थ-- व्यतिरेकदृष्टान्त द्वारा एवंभूत नय का दृढ़ीकरण--
यदि वस्तु अर्थात् शब्द अपने विग्रह (व्युत्पत्ति) से भिन्नार्थ को कहेगा तो घट शब्द का प्रयोग कुम्भ के अर्थ में ही नहीं होगा, अपितु पट के अर्थ में भी हो जायेगा । पूर्व श्लोक में कथित बात का ही यहाँ दृष्टान्त से:समर्थन है ।।१८।।
(१६) क्रमशो नयानां वैशिष्टयम्-- सप्ताप्यमी सन्ति नया विशुदाः,
यथोत्तरं चैंषु परो विशिष्टः । एकैकरूपस्य शतं प्रभेदाः,
तस्मान्नयाः सप्तशतानि सन्ति ।।१।।
नयविमर्शद्वात्रिशिका-८०