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सप्तानामपि नयानां द्वयोरेव वर्गीकररणम्
[ उपजातिवृत्तम् ]
द्रव्यास्तिके भान्ति च नैगमादि -- चतुर्नया वै ऋजुसूत्रकान्ताः । शब्दादयस्ते चरमे त्रयोsपि, पर्यायपूर्वास्तिकवर्तिनः स्युः ॥२१॥
सरलार्थ
सातों नयों का दो नयों में ही वर्गीकररण
पुनः ऐसा भी माना जाता है कि सातों नयों का अन्तर्भाव द्रव्यास्तिक में और पर्यायास्तिक में होने से नयों के दो हो भेद होते हैं । नैगम संग्रह व्यवहार और ऋजुसूत्र इन प्रथम चारों नयों का अन्तर्भाव द्रव्यास्तिक में संथा शेष शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत इन तीन नयों का अन्तर्भाव पर्यायास्तिक में मानने से नयों के दो ही भेद समझने चाहिये ।।२१।।
( २२ )
सर्वे नयाः परस्परं संमिल्य जिनागमस्य सेवां कुर्वन्ति, तद्विषयकं स्पष्टीकरणमाह
नयविमर्शद्वात्रिंशिका - ८२