Book Title: Nayvimarsh Dwatrinshika
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

View full book text
Previous | Next

Page 100
________________ सरलार्थ-- व्यतिरेकदृष्टान्त द्वारा समभिरूढ़ नय का पुष्टीकरण-- यदि समानार्थक अनेक शब्दों में समानता मानी जाय, और अपने-अपने व्युत्पत्तिजन्य विशेषार्थ को न माने तो घट-पट में भी समानता हो जायेगी। घट भी पट का पर्याय बन जायेगा, किन्तु ऐसा नहीं होता क्योंकि दोनों के व्युत्पत्तिजन्य अर्थ में भेद है तब घट और कलश में समानता क्यों मानें ? यहाँ भी तो व्युत्पत्ति द्वारा भिन्नता हुई है:।।१६।। (१७) एवंभूतनयस्वरूपमाह [ इन्द्रवज्रावृत्तम् ] शब्देऽथ कस्मिन्नपि विग्रहार्थों, जाघट्यते चेदथ तत्र सोऽस्तु । कर्वन्तमर्थ निजविग्रहाप्तं जानाति सैवं पदकादिभूतः ॥१७॥ सरलार्थ-- एवंभूतनय का स्वरूप-- यदि किसी शब्द में उसका अपना विग्रहजन्य अर्थ बैठता है तो वह शब्द उस अर्थ में प्रयुक्त होगा अन्यथा नहीं अर्थात्-उसी अर्थ में उसका प्रयोग होगा। अपने नयविमर्शद्वात्रिशिका-७६

Loading...

Page Navigation
1 ... 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110