Book Title: Nayvimarsh Dwatrinshika
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir
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अन्वय : __ त्वरितं त्वं वनस्पति गहाण, इति प्रोक्तेऽपि कोऽपि किञ्चित् न गहरणाति, प्रानं ददस्वादि विशेषशब्दं हि तावद् न वदेत् प्रयोगः वृथा' इत्यन्वयः ।
व्याख्या :
त्वरितं शीघ्रत्वं (संकेतार्थे जनं प्रति) वनस्पति पादपादीन् गृहारण पानय इति प्रोक्तेऽपि कथितेऽपि आदेशानन्तरं कोऽपि सांकेतिकः अाज्ञानुगः जनः किञ्चित् अज्ञानतया न गृह रणाति आनेतुमक्षमः आम्र ददसु आदि पाम्रादिजम्बवादि-विशेषफलं आनेतु अशक्योऽस्ति । विशेषशब्द हि तावद् न वदेत् अर्थात् विशेषशब्दस्य प्रयोगं विना तं आनेतुं असमर्थो भवति । अतः विशेषधर्म विना सामान्यधर्म व्यर्थमेव निरर्थकमेव वृथा प्रयोगः इति व्यवहारनयस्य स्पष्टार्थः ।।६।।
पद्यानुवाद :
[ उपजातिवृत्तम् ] लाना जरा वत्स ! वनस्पति को, क्या ला सकेगा पृथग पाम्र ही को। विशेष संकेत बिना नहिं ये, सामान्य सत्ता सब हो व्यर्थ है ॥६॥
नयविमर्शद्वात्रिशिका-२४

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