Book Title: Nayvimarsh Dwatrinshika
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir
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(२) नयनामदर्शनम्
[ आर्यावृत्तम् ) क्रमशो नैगम-संग्रह
व्यवहारजु सूत्रनामतः पश्चात् । शब्दोऽथ समभिरूढः,
सप्तमनय एवंभूतनामारित ॥२॥ सरलार्थ
नयों के नाम [जैनदर्शन में] क्रमशः (१) नैगम, (२) संग्रह, (३) व्यवहार, (४) ऋजुसूत्र, (५) शब्द, (६) समभिरूढ़ और (७) एवंभूत ये सात नय माने जाते हैं अर्थात् नय सात हैं ।।२।।
( ३ )
वस्तूनामुभयात्मकत्वम्
[ उपजातिवृत्तम् ] सामान्यधर्मेण विशेषधमः,
साकं सदा सन्ति समे पदार्थाः । जात्यादिकं तत्र समानधर्मः
विभेदकाः व्यक्तिविशेषधर्माः ॥३॥
नयविमर्शद्वात्रिशिका-६६

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