Book Title: Nayvimarsh Dwatrinshika
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

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Page 89
________________ नयविमर्शद्वात्रिंशिका (हिन्दोसरलार्थयुक्ता) o (१) मङ्गलाचरणं विषयश्च [ इन्द्रवज्रावृत्तम् ] श्रीवीरदेवाय नमोऽस्तु तस्मै, सर्वे नया यद् वचने विभान्ति । संक्षेपतस्तन्नयवादशास्त्र, व्यास्यामि सम्यक्तरमात्मनीनम् ॥१॥ सरलार्थ मंगलाचरण और विषय जिनके वचन में सर्व नय शोभा पाते हैं ऐसे श्री वीरदेव-वर्द्ध मानविभु को नमस्कार कर मैं उत्तम आत्मभाव से संक्षेप में नयवाद शास्त्र की व्याख्या करता हूँ। नयविमर्शद्वात्रिशिका-६८

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