Book Title: Nayvimarsh Dwatrinshika
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

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Page 91
________________ सरलार्थ पदार्थों का उभयात्मक रूप विश्व में सब पदार्थ अर्थात् वस्तुएँ सामान्यधर्म एवं विशेष धर्मों से युक्त हैं । पदार्थ में जाति आदि को सामान्यधर्म तथा अन्य से भेद दिखलाने वाले गुण को विशेष धर्म कहा जाता है ||३|| ( ४ ) सामान्य- विशेषयोरुदाहरणद्वारा भेददर्शनम् - [ उपजातिवृत्तम् ] सामान्यधर्मेण घटत्वबुद्ध्या, घटेsपि लक्षादधिके सदैक्यम् । तेभ्यः सदा स्वं घटमानयन्ति, विशेषधर्मेण परीक्ष्य लोका ॥४॥ सरलार्थ सामान्य तथा विशेषधर्म के उदाहरण द्वारा भेददर्शन घटत्व (इस) सामान्यधर्म द्वारा तज्जातीय लाखों घटों में सर्वदा एकता बनी रहती है । घटत्व की अपेक्षा सब घट एक से ही हैं, किन्तु विभेदक विशेषधर्म के द्वारा उन अनेक घटों में से अपना-अपना घट पहचान लिया जाता है और व्यवहार चलता है ||४|| नयविमर्शद्वात्रिशिका - ७०

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