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सरलार्थ
संग्रहनय का स्वरूप संग्रह नामक नय केवल सामान्यधर्म (जाति) को हो कहता है क्योंकि यह दूसरा नय ऐसा मानता है कि वस्तुओं में सामान्य धर्म के अतिरिक्त विशेष आदि धर्म का कुछ भी अस्तित्व नहीं है । सामान्य के अतिरिक्त विशेष धर्म तो आकाश कुसुम के समान मिथ्या है ।।६।।
(७) संग्रहनयस्य दृष्टान्तद्वारा स्पष्टीकरणम्--
_ [ उपजातिवृत्तम् ] वनस्पति यो नहि बुध्यतेऽत्र,
बुध्येत निम्बामवटान् कथं सः? हस्तेऽङ गुलिवा नखमण्डलानि,
न हस्ततो वस्तु विभिन्नमरित ॥७॥
सरलार्थ--
संग्रहनय का दृष्टान्त द्वारा स्पष्टीकरण जब कोई व्यक्ति वनस्पति (झाड़-पेड़ आदि) को ही नहीं जानता है तो फिर उसे नीम, आम, वट आदि के पत्र-पुष्पादि लाने को कहा जाय तो वह कैसे ला सकेगा ?
नयविमर्शद्वात्रिशिका-७२