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इसका हिन्दी भाषा में सरलार्थ, पद्यानुवाद तथा भावानुवाद भी किया है ।।३०॥
(८) मेरी अभिलाषा है कि यह ग्रन्थ सबको तर्कशास्त्र, न्यायशास्त्र का ज्ञान सुगमता से प्रदान करे तथा जब तक चन्द्र और सूर्य हैं तब तक यह सुशोभित रहे ॥३१॥
(६) हे जिन ! आगम-शास्त्रपीठ पर मैं पद्यमय भावमकरन्दरसों से युक्त नयविमर्शद्वात्रिशिका रूपी पुष्पों से तथा गद्यात्मरूप सुन्दर पूजाक्षतों से आपकी अर्चना करता हूँ ॥३२॥
॥ इति श्रीनयविमर्शद्वात्रिंशिका व्याख्या-पद्यानुवादभावानुवाद सहिता समाप्ता ।।
नयविमर्शद्वात्रिशिका-६७