Book Title: Nayvimarsh Dwatrinshika
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

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Page 86
________________ (८) अभिलाषा मदीयेयं, जायतां जगतां हिते। यावच्चन्द्रार्कभावन्तौ, तावद् ग्रन्थो विभासतु ।।३१।। (६) [ वसन्ततिलका - वृत्तम् ] द्वात्रिंशिका नयविमर्शवचांसि पुष्पैः, पद्यात्मभावमकरन्दरसाभिरामैः । गद्यात्मकाक्षतकणः सुललामरूपैः, त्वामर्चयामि जिनशासनशास्त्रपीठे ।।३२।। ॥ इति 'श्रीनयविमर्शद्वात्रिशिका' समाप्ता ।। 卐 प्रशस्ति का भावार्थ ) (१) प्राचार्य श्रीनेमिसूरीश्वरजी म. सा. पूज्य हैं, तपागच्छ के नायक हैं, उत्तम हैं, शासन के सम्राट हैं, प्रौढ़ हैं और तीर्थों का उद्धार करने में धुरन्धर हैं ।।२४।। (२) उन्हीं के पट्टधर प्राचार्य श्रीलावण्यसूरीश्वरजी म. सा. प्रसिद्ध हैं, अनेक ग्रन्थों के सृजक हैं, विज्ञ हैं और साहित्य नयविमर्शद्वात्रिशिका-६५

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