Book Title: Nayvimarsh Dwatrinshika
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

View full book text
Previous | Next

Page 52
________________ परिवर्तनशील मानता है । एक समय में न ही युवा है न ही दूसरे समय में वृद्ध है । एक समय में एक ही स्थितिवाला उसे ग्राह्य है। यह क्षणभङ्गवाद में विश्वास करता है।।११।। [ १२ ] ऋजुसूत्रनयस्य स्पष्टीकरणम् - [ उपजातिवृत्तम् ] भूतेन कार्य न भविष्यतापि, ___ परेण वा सिध्यति वस्तुना न । स्वार्थ स्वकीयेन सता च वस्तुना, प्राप्नोति भिन्न गगनस्य पद्मम् ॥१२॥ अन्वय : ___'भूतेन परेण वा भविष्यता अषि वस्तुना कार्य न सिद्ध्यति । स्वकीयेन वस्तुना सता च स्वार्थं प्राप्नोति, (तद्) भिन्न गगनस्य पद्मम्' इत्यत्वयः । . . . व्याख्या : भूतेन अतीतेन परेण परकीयेण भविष्यता अनागतेन वस्तुना पदार्थेन कार्य प्रयोजनं न सिद्धयति सिद्धिर्न भवति नैव जायते । स्वकोयेन वस्तुना वर्तमानकाले सम्भूतेन वस्तुना अर्थात् वर्तमानकालस्य यत् पर्यायां प्रवर्तमाने समये दृष्टिगतं अस्ति । एतादृशी वर्तमानकालावजन्या, वस्तुना .. एव सर्वप्रयोजनसिद्धिः जायते तस्मात् भिन्न वर्मामान नयविमर्शद्वात्रिंशिका-३१६

Loading...

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110