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भावानुवाद : __ सुगन्धित भावपुष्पों से एवं नयविमर्शरूपी अक्षत कुसुमों के वचनों से चरमतीर्थंकर श्रमण भगवान महावीर परमात्मा को शीलगुणसम्पन्न सुशीलसूरि नामवाला मैं, प्रभु की भक्ति के लिये तथा अपने आत्मश्रेय के लिये यह नयविमर्श ग्रन्थ, पुष्पमाला के समान समर्पित करता है तथा आपकी अर्चना में विनत हो रहा हूँ।
नयविमर्शद्वात्रिशिका-६२