________________
सूक्ष्मतर दृष्टिकोण को लेकर शब्दपर्याय को समीक्षा करता है कि व्युत्पत्तिजन्य अर्थ शब्द की व्यावृत्ति के तत्समय ही कैसे सिद्ध हो सकता है। शब्दों के उच्चारण के समय तथा अर्थ के अवग्रह के समयान्तराल में क्या स्थिति होती है इस विषय में यह विचारणीय है कि शब्द की आकृति धर्म, जाति आदि विषय में क्या स्वयं शब्द ही व्युत्पत्तिअर्थ उसी समय घटित करता है ? नहीं, व्यञ्जनावग्रह के पश्चात् अर्थावग्रह हो जाता हो तो फिर अर्थावग्रह की आवश्यकता ही न रहती। अतः जिस शब्द का जो अर्थ है उसके घटित होने पर ही उस शब्द का प्रयोग यथार्थ
एवंभूतनय स्पष्ट व्याख्या करता है कि एक शब्दपर्याय द्वारा कथित वस्तु वा पदार्थ की कहने के समय या उस की व्युत्पत्ति के समय निश्चित रूप से स्व कार्य में प्रयुक्ति होती है, तथा अपना कार्य करती हुई यह शक्ति एवंभूत नय कही जाती है। अर्थात् यथा 'घट आहरणार्थे' व्युत्पत्तिजन्य अर्थ है। एवंभूत नय की मान्यता है कि घट जलाहरणादि क्रिया के समय ही घट कहा जायगा। क्योंकि एवंभूत नय सर्वदा व्यञ्जनावग्रह को प्रधानता देता है । जैसे 'राजते इति राजा' राजा तब है जब कि वह राजदण्ड, छत्रादि, राज-चिह्नों से विभूषित हो। एवंभूत नय में जब कोई क्रिया हो रही हो उसी समय उस से सम्बन्धित
नयविमर्शद्वात्रिशिका-४६