Book Title: Nayvimarsh Dwatrinshika
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

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Page 58
________________ व्याख्या : ___ इह नयेषु शब्दनयः कुम्भे घटे वा कलशे कुम्भः आकृत्या घटात् भिन्नः भवति, कलशः पूजार्थे जलाहरणार्थ वा कलशस्थापने प्रयोगार्थं विशेषरूपेण प्रयुक्तः भवति असौ अपि घटाकृत्या भेदं धारयति, किन्तु शब्दनय एतादृशे भेदेऽपि भिन्नतां नैव मन्यते । अनेकपर्यायः सूचित वाच्यार्थमपि एकपर्याये एव जानाति । पर्यायभिन्नेषु अनेक पर्यायैः प्रोक्तेषु अपि संसूचितेषु अपि ऐक्यं एव एकघटपर्याये एव मन्यते । शब्द-समभिरूढ़-एवंभूताः नयाः शब्दशास्त्रण संयुक्ताः । शब्दनयस्तु शब्दभिन्नत्वेऽपि अर्थभेदं अस्वीकरोति ।।१३।। पद्यानुवाद : अनेक पर्यायक शब्द से येही एक वाच्यार्थ पदार्थ का है। है शब्द नय तो पर्याय ऐक्य, माने न कुभादि घटादि भिन्न ।।१४॥ भावानुवाद : समान लिङ्गवाले पर्यायवाची शब्दों में भले ही भिन्नता हो, अर्थभेद की दृष्टि से इन पर्याय शब्दों में नयविमर्शद्वात्रिंशिका-३७

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