Book Title: Nayvimarsh Dwatrinshika
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

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Page 35
________________ विशेषं विना सामान्य धर्मो न, विशेषधर्मोऽपि तद् विना न स्यात्' इत्यन्वयः । व्याख्या : अयं एषः नैगम: 'न एको गमो विकल्पो यस्येति नैगमः' वस्तूभयं पदार्थस्य सामान्यविशेष उभयात्मकं मानयति, नैगमः अन्यविकल्परहितः अस्ति यत्र नास्ति कोऽपि अन्यः विकल्पेत्यर्थः । विशेषं विना निर्विशेष सामान्यधर्मो न, सामान्यस्वरूपं नैव वर्तते, विशेषधर्मोऽपि विशिष्टलक्षणो धर्मोऽपि सामान्यलक्षणेन नैसर्गिकैक्यं सामान्यं विहाय न सम्भवति । अर्थात् नैगमः उभयात्मकमेव लक्षणं पदार्थस्य व्यनक्ति। पद्यानुवाद: [ उपजातिवृत्तम् ] सामान्य भी और विशेषधर्मी, नैगम है नित्य ये युग्मरूपी । सामान्य विशेष विना नहीं है, विशेष विना न सामान्य भी है ॥५॥ भावानुवाद : नैगमनय की शास्त्रीय व्युत्पत्ति करते हुए कहा है कि 'न एको गमो विकल्पो यस्य सः नैगमः' अर्थात् जिसका एक भी अन्य कोई विकल्प नहीं हो, वह नै गम कहा जाता नयविमर्शद्वात्रिशिका-१४

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