Book Title: Nayvimarsh Dwatrinshika
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

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Page 36
________________ है। नैगमनय पदार्थ को उभयात्मक सत्ता वाला मानता है। इसलिये कहा है कि णेगाई मारणाई सामन्नोभय-विसेसनारणाई । जं तेहि मिरणइ तो ऐगमो गोणेगमारणोत्ति ।। [विशेषावश्यक० २१६८] अर्थात जो वस्तु का स्वरूप या पदार्थ का धर्म उभय ज्ञान-प्रमारणों के द्वारा-सामान्य ज्ञान द्वारा तथा विशेष ज्ञान द्वारा स्वीकार करता है, वह नैगमनय है। नैगम का सामान्य अथवा विशेष यह विकल्प नहीं होता और वास्तव में उसके उभय विकल्प होते हैं। यह नैगमनय का लक्षण है । यही नैगमनय गौण तथा मुख्य दोनों विकल्पों से युक्त रहता है, इसलिये विकल.देश (नय) कहलाता है। सकलादेश (प्रमाण) में यह गौण-मुख्य से युक्त नहीं होता। जैसे-'चैतन्योऽयं जनः' अर्थात् यह चैतन्यवान जीव जन (मनुष्य) है। इसमें 'चैतन्यः' जीव का सामान्यधर्म है और 'जनः' (मनुष्य) जीव की विशेष पर्याय है। इसी प्रकार से 'घटोऽयं रक्तः' अर्थात् 'यह घड़ा लाल है' इसमें घटत्व सामान्यधर्म है और रक्त (लाल) वर्ण विशेषधर्म है। नयविमर्शद्वात्रिशिका-१५

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