Book Title: Nayvimarsh Dwatrinshika
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

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Page 32
________________ एक स्थल में हजारों गायों का मेला है। उसमें पशुत्व एक सामान्य धर्म है किन्तु यह गाय गौरी है, यह गाय काली है, यह गाय चित्रविचित्र वर्ण वाली है ये सब विशेषधर्म हैं। ये सामान्य तथा विशेष धर्म कभी वियुक्त नहीं रह सकते। इसलिये पदार्थ को सामान्य विशेषात्मक उभयस्वरूप माना है। इस विषय में कहा भी है 'सामान्यविशेषात्मा तदर्थो विषयः ।' [परीक्षामुखम् ४ । १] अर्थात् सामान्य-विशेषात्मक पदार्थ ही प्रमाण का विषय है ।।३।। [ ४ ] सामान्य-विशेषयोरुदाहरणद्वारा भेददर्शनम् [ उपजातिवृत्तम् ] सामान्यधर्मेण घटत्वबुद्ध्या, घटेऽपि लक्षाधिके सदैक्यम् । तेभ्यः सदा स्वं घटमानयन्ति, विशेषधर्मेण परीक्ष्य लोकाः ॥४॥ अन्वय : 'सामान्यधर्मेण लक्षाधिके घटेऽपि घटत्वबुद्धया सदैक्य, तेभ्यः सदा लोकाः विशेषधर्मेण स्वं घटं परीक्ष्य मानयन्ति' इत्यन्वयः। नयविमर्शद्वात्रिशिका-११

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