Book Title: Nayvimarsh Dwatrinshika
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

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Page 31
________________ सामान्य और दूसरा विशेष । जैसे स्वर्ण-मुद्रा, उसका एक रूप तो सामान्य है और दूसरा रूप विशेष है। हम एक रूप को दूसरे से भिन्न नहीं कर सकते । उसी प्रकार वस्तु के उभयात्मक स्वरूप को भी एकात्मक नहीं कर सकते । अर्थात् सामान्य से विशेष को वियुक्त नहीं कर सकते तथा विशेष भी सामान्य से रहित नहीं रह सकता। यदि वस्तु या पदार्थ का एक ही स्वरूप माना जाय तो उसमें दूसरे स्वरूप का अभाव स्वतः ही हो जायगा । इसलिये सामान्य से विशेष जुड़ा हुआ ही है । __ जैसे फाल्गुन शुक्ला त्रयोदशी का दिन है। विश्वविख्यात तीर्थसम्राट श्री शत्र जयमहातीर्थ के छगाऊ की यात्रा में हजारों यात्रिक मनुष्यों की मेले के रूप में भीड़ लगी है। व्यक्तियों की भीड़ मनुष्यों के एक सामान्य लक्षण को व्यक्त करती है, किन्तु उसमें कोई बम्बईवाले हैं, कोई मद्रासवाले हैं, कोई कलकत्तावाले हैं, कोई अहमदाबादवाले हैं, कोई राजस्थानी, मारवाड़, मेवाड़, मालवा वाले हैं, कोई गुजराती गुजरात-सौराष्ट्र, कच्छ वाले हैं, कोई महाराष्ट्रीय पूना, सतारा, बेलगाँव वाले हैं, कोई पंजाबी और कोई बंगाली आदि भी हैं। किसी का कद ऊँचा है और किसी का कद नीचा-ठिगना है । किसी का गौर वर्ण है तो किसी का वर्ण गेहुँया है। ये सब भिन्नताएं विशिष्ट धर्मों का प्रकाशन करती हैं। नयविमर्शद्वात्रिशिका-१०

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