Book Title: Nayvimarsh Dwatrinshika
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

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Page 29
________________ इस 'नयविमर्शद्वात्रिशिका' के द्वितीय श्लोक में नय के सात भेद मानकर उनकी संख्या और उनके नाम का निर्देश मैंने किया है ||२|| वस्तूनामुभयात्मकं रूपम् [ ३ ] [ उपजातिवृत्तम् ] सामान्यधर्मेण विशेषधमै ?, साकं सदा सन्ति समे पदार्थाः । जात्यादिकं तत्र समानधर्मी, विभेदकाः व्यक्तिविशेषधर्माः ॥३॥ अन्वय : समे पदार्था: सामान्यधर्मेण विशेषधर्मैः सदा सार्क सन्ति । तत्र जात्यादिकं समानधर्मः, व्यक्तिविशेषधर्माः विभेदका: (सन्ति) इत्यन्वयः । :. व्याख्या : सामान्यधर्मेण पदार्थाश्च विशेषधर्मेण विभक्तौ सामान्यधर्मः यथा मुद्रायाः एकं पार्श्व सामान्यं, द्वितीयं विशिष्टम् । विशेषधर्मेण पदार्थानां विशिष्टो यो गुरणः तेनान्वितः पदार्थः विशिष्टः सदा नित्यं साकं सहितं समे पदार्थाः सर्वे पदार्थाः सदैव उभयात्मकं स्वरूपं भवन्ति । जीवाऽजीवादिपदार्थाः नयविमर्शद्वात्रिंशिका-८

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