Book Title: Nayvimarsh Dwatrinshika
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

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Page 24
________________ भावानुवाद : 'सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः' [श्रीतत्त्वार्थसूत्र अध्याय १, सूत्र-१] मोक्षमार्ग के लिये सम्यग्दर्शन, तदनुरूप सम्यग्ज्ञान तथा सम्यक्चारित्र की प्राप्ति, यही मोक्षमार्ग का साधन है। मानवजीवन का परमोत्कर्ष मोक्ष में ही है । इसी ध्येय के हेतु सर्वज्ञ श्रीतीर्थंकर परमात्माओं, श्रीगणधर भगवन्तों तथा श्रीपाचायमहाराजाओं आदि ने मोक्षप्राप्ति हेतु साधनोंका तात्त्विक निर्देशन किया है । मोक्षप्राप्ति के तीन साधन हैं। प्रथम, सम्यग्दर्शन का अर्थ तत्त्वार्थ का श्रद्धान है। जीवाजीवादि इन नौ तत्त्वों का सम्यग्ज्ञान परिशीलन ही सम्यग्दर्शन है । तत्त्वज्ञान की प्राप्ति के प्रमोघ उपाय हैं-प्रमाण और नय । 'प्रमाणनयैरधिगमः' [श्रीतत्त्वार्थसूत्र, अध्याय-१ सूत्र-६] इस सूत्र में भी पूर्वधर आचार्य श्रीउमास्वाति महाराज ने प्रमाण और नयों से तत्त्वों का परिज्ञान होता है, ऐसा स्पष्ट कहा है । __ अनंतधर्मात्मक वस्तु के अनेक धर्मों (अंशों, गुणों) का बोध प्रमाण कराता है और एक धर्म (अंश, गुण) का बोध नय कराता है । इसलिए प्रमाण सकलादेश भी कहा जाता है और नय विकलादेश भी। जैनदर्शन की विचारधारा के अनुसार विश्व की प्रत्येक वस्तु अनंत धर्मात्मक है । 'अनन्तधर्मात्मकं वस्तु' इस तरह विद्वद्वर्य प्राचार्य श्री मल्लिषेणसूरीश्वरजी महाराज ने 'स्याद्वादमंजरी' ग्रन्थ में नयविमर्शद्वात्रिशिका-३

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