Book Title: Nayvimarsh Dwatrinshika
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

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Page 25
________________ व्यक्त कर इसका समर्थन किया है । इस प्रकार प्रमाण और नय द्वारा जीवाजीवादि तत्त्वों का वास्तविक, यथार्थज्ञान ही सम्यग्ज्ञान है। सम्पूर्ण नयवाद का सिद्धान्त जिनके केवलज्ञान रूपी निर्मल दर्पण में साक्षात् प्रतिबिम्बित-प्रकाशमान है ऐसे सर्वज्ञ श्रीवीरदेव-महावीरस्वामी भगवान की स्तुति के साथ-साथ नैगमादि सात नयों का संक्षिप्त वर्णन 'नयकणिका' ग्रन्थ में विद्धान् वाचकवर्य श्रीविनयविजयजी महाराज ने जैसा किया है वैसा ही मैं भी उन्हीं का आलम्बन लेकर नव्य रूप में इस 'नयविमर्शद्वात्रिशिका' (व्याख्या तथा भावानुवाद युक्त) के माध्यम से नयज्ञान की प्राप्ति और आत्मोपलब्धि हेतु संक्षेप से कर रहा हूं। उसके प्रारम्भ में यहाँ प्रथम श्लोक में विघ्नों के शमन हेतु मंगलस्वरूप श्रीमहावीरस्वामी भगवान की स्तुति कर नयवाद का विषय-कथन सूचित किया है ।। १ ।। [ २ ] नयनामदर्शनम् - [ आर्या-वृत्तम् ] क्रमशो नैगम-संग्रह व्यवहार-ऋजुसूत्रनामतः पश्चात् । शब्दोऽथ समभिरूढः, सप्तमनय एवंभूत नामास्ति ॥२॥ नयविनर्शद्वात्रिशिका-४

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