Book Title: Nayvimarsh Dwatrinshika
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir
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विषय
पृष्ठ संख्या १४. समभिरूढ़नयस्वरूपम् १५. व्यतिरेकदृष्टान्तेनास्य पुष्टीकरणम् १६. एवंभूतनयस्वरूपम् १७. व्यतिरेकदृष्टान्तेनास्य दृढीकरणम् १८. क्रमशो नयानां वैशिष्टयम् १६. मतान्तरे नयानां पञ्चैवभेदा: २०. सप्तानामपि नयानां द्वयोरेव वर्गीकरणम् ५४ २१. सर्वे नयाः परस्परं संमिल्य जिनागमस्य सेवां ५७
कुर्वन्ति, तद् विषयकं स्पष्टीकरणम्। २२. श्रमविभुश्रीवीरजिनेन्द्राय समर्पणम् २३. प्रशस्तिः २४. नयविमर्शद्वात्रिंशिका हिन्दी सरलार्थयुक्ता
- सोलह -

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