Book Title: Nandanvan Kalpataru 2018 11 SrNo 41
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ गीतिका जलदाह्वानम् प्रा. अभिराजराजेन्द्रमिश्रः एहि, देहि जलद! जलं भूतलं विधेहि कलं गर्ज गर्ज, बूंह बूंह, यशो वर्धताम् ॥१॥ धाव धाव गगनशाव ! कुलिशपातघोरराव ! शतक्रतुमहाप्रभाव ! जगन्मोदताम् ॥२॥ ज्चलति धराउनलम्परा दावदग्धवनान्तरा सरल-देवदारुवनी नाऽवशिष्यते ॥३॥ उद्वमत्कूशानुभानुभानुसञ्चयैरयं नु दह्यमानलोक एष भृशं तप्यते ॥४॥ कृपवापिकाकथाऽपि नामशेषतां गताऽस्ति भूरिसैकताऽवलोक्यते बृहन्नदी ॥५॥ विवृतचञ्चुचातकः प्रशुष्ककण्ठकाः पिकाः तृषार्दिता द्रवन्ति वन्यजातकास्त्वमी ॥६॥ विचर विचर गगनचर ! त्वं भवाऽतपत्रमुपरि रुष्टतरणितापमहो शमय शमय बन्धो !! ॥७॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90