Book Title: Nandanvan Kalpataru 2018 11 SrNo 41
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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हसए अ तुवरए तह लेइ अ पुंनामयाइँ एस जणो । कीस न हससि न तुवरसि न लेसि विलया इअ लवन्ति ॥७॥ तं सि तहा एस म्हि अ अम्हत्थि जुअम्ह सम-गुण म्हो अ । गायामो इअ नव-लट्ट-गोविआणं इदो वत्ता ॥७२॥ अत्थि अहं तुममेसा दरिसेइ न का वि कुसुम-विन्नाणं । इअ भणिअ का वि कारइ मुचुकुन्दाओ कुसुम-हरणं ॥७३॥ अलि-गुञ्जिअं करावइ मालिणि-हल्लप्फलं करावेइ । जाणावइ रइ-लीलं मयणं भावेइ पारत्ती ॥७४॥ तोसविअ-तरुण-गोवं तोसिअ-हरिणं इदो अ जव-गोवी । खे भामइ गीअ-झुणिं पउत्थ-सत्थं भमाडेइ ॥७५॥ कारिअ-अलि-कुल-रोला मरुवय-माला कराविअच्छि-छणा । उअ कारीअइ जीए जयं करावीअइ अणङ्गो ॥७६।। कुन्देहि कराविज्जइ तह कारिज्जइ नवेहि लवलेहि । जं ताण परिमल-वहो गन्धवहो मारइ पउत्थे ॥७७॥ कारेइ कं न हरिसं कारावेइ अ न कं रउच्छाहं । हासाविअ-जुव-गोवा जुव-गोवी कारिआणङ्गा ॥७८॥ जाणामि न हि न जाणमि नारङ्ग-फलाई वन्निउं देव । वण-सिरि-वहूएँ घट्टसुआई सोहन्ति एआइं ॥७९॥ पउमसिरि तं भणामो भणिमो तं लच्छि भणिमु तं गउरि । भणसु तमिले भ णाम य तं गङ्गे तं भणामु कमलच्छि ॥८०॥ तं सिरि भणमो भणिम तमुमे जए तं च भणम कुन्द-वणं । उच्चिणह गहिअ-नाम लवन्ति विलया इअन्नोन्नं ॥८१॥ फलिणि-कुसुमं विहसिउं विहसेउं लोद्धयं पयट्टेइ । हसिऊणं विहसेऊण निअ इमं अणहसेअव्वं ॥८२।। गन्धेण अहसिअव्वं विहसेहिइ इममिमं च विहसिहिइ । विहसेइ इमं विहसइ इमं च वारुणि-वणे पुष्पं ॥८३॥ इह हसउ पहिअ-लोओ हसेउ उज्जाण-बालिआ-लोओ । विहसन्त-हिओ विहसेन्त-लोअणो फलिअ-बोरीहि ॥८४॥ जयइ अणङ्गो कह पहु सुणाउ विहसेज्ज जइ न पुंनागो । न य विहसेज्जा लवली होईअइ न वि अ कुन्देहि ॥८५।।
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