Book Title: Nandanvan Kalpataru 2018 11 SrNo 41
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 27
________________ माधुर्यं हृदयमदो, द्रवयति वितरति मनसि सदाऽऽह्लादम् । भोगे करुणे विरहे, शान्ते क्रमशोऽधिकं भाति ॥ ११६ ॥ कोमलवर्णैरनधिक समाससन्धिप्रसन्नरचनाभिः । भवति व्यक्तो मधुरो, मालिन्यादिक मधुरवृत्तैः ॥११७॥ श्लेषादिमकाव्यगुणा, दश रुद्रटमुख्यसूरिकथितास्ते । अल्पप्रवृत्तिसिद्धा, अपि न विशिष्टप्रयोजनकाः ॥११८॥ प्रविशन्ति प्रोक्तगुणे, केचन केचिदिह दूषणाभावे । रचनाविशेषतायां, न स्वातन्त्र्यं भजन्त्येते ॥ ११९॥ एतावन्मात्रोऽयं ग्रन्थः, अपूर्णः ॥ •**•** १८

Loading...

Page Navigation
1 ... 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90