Book Title: Nandanvan Kalpataru 2018 11 SrNo 41
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ घनध्वानसहितसततवर्षणं प्रयच्छ रक्ष ! भृज्यमानजनकदम्बकं दवैकसिन्धो ! ॥८॥ कामरूप सौख्यदूत ! भूमिभूसुताऽक्षिपूत ! हेऽपराञ्जनेय ! सत्वरं हराऽधिमानम् ॥९॥ बिभूहि बिभूहि रिक्तगर्त - मुन्नमय जगद्विवर्त माशु चण्ड ! खण्डयाऽर्क ! वृथा दुरभिमानम् ॥१०॥ दिशस्तृषाकातराः भवन्ति रुधिरसागराः वमन्ति तच्च कुसुमचयैः किंशुकाननानि ॥११॥ अन्तरिक्षमप्यहो व्यनक्ति रोषमुद्ग्रहो विधाय चक्रवातमण्डलानि चित्रकाणि ॥१२॥ अङ्गमे बङ्ग तमिल केरलान्ध्रमेहि गुर्जरं त्रिलिङ्गमेहि विन्ध्यमेहि शीघ्रम् ॥ १३ ॥ प्रतिग्राममेहि जलद ! पुरं पुरं सुखय सुखद ! रमय पशुविहङ्गनिचयमङ्कुरय शिलीन्ध्रम् ॥१४॥ प्रावृषेण्य हे वरेण्य ! विद्युतां सुभागधेय ! शीतलय वसुन्धरां विधेहि हरितशाटीम् ॥ १५ ॥ आनन्दय भेकशिशून् आह्लादय लोलवटून् विद्योतय दामिनीं विकासयाऽऽम्रवाटीम् ॥ १६॥ ४ सनराईज विला (समीप वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय), लोअर रामरहिल, शिमला - १७१००५ (हि.प्र.)

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90