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मुक्ति का अमर राही : जम्बकुमार
१ : जन्म-पूर्व : परिवार एवं परिस्थितियाँ
मगध की राजधानी राजगृह मे आज अपूर्व हर्षोल्लास लहरा रहा था । सर्वत्र अद्भुत स्फूर्ति और उत्साह दृष्टिगत हो रहा था। आकर्षक और मूल्यवान वस्त्रालकारो से सज्जित नागरिकजन आर्य सुधर्मास्वामी की अमृतोपम वाणी-श्रवण की लालसा के साथवैभारगिरि की ओर अग्रसर हो रहे थे। जिन्हे उपदेश-सुधा का पान करने का सुअवसर प्राप्त हो चुका था, उनके मुखमण्डल पर अचल सन्तोप और ज्ञानाभा झलक रही थी और जो इस सुयोग की प्रतीक्षा मे थे, उनके मुख पर आतुरता के चिह्न स्पष्टत. दृष्टिगत हो रहे थे । इन जिज्ञासुजनो का रेला ही बह पडा थादेशना-स्थल की ओर ।
आर्य सुधर्मास्वामी भगवान महावीर स्वामी के पचम गणधर और प्रधान शिष्य थे। भगवान के उपदेशो को जन-जन तक पहुंचाने के पुनीत अभियान में व्यस्त आर्य सुधर्मास्वामी उस युग के परम श्रद्धय साधक थे और उनकी वाणी मे अनुपम प्रभाव था, जो श्रोताओ को कलुषित पगडडियाँ त्यागकर प्रशस्त धर्म-पथ की ओर अग्रसर होने की सशक्त प्रेरणा देने मे सर्वथा सक्षम था।