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भिखारी और चोर मेरी वाटिकाके द्वारपर वह आया और बोला-'बाबूजी, अपनी बगीचीसे कुछ फूल मुझे ले लेने दीजिए।'
फटे-पुराने कपड़ोंसे अस्त-व्यस्त रूपमें तन ढके उस तरुण बालकको ध्यानपूर्वक देखते हुए मैंने पूछा-'तुम कौन हो ?' ।
"भिखारी', उसका उत्तर था, और उसमें सन्देहका कोई स्थान न था। ___ 'भिखारियोंको ऐसी चीज़ न मांगनी चाहिए। तुम चाहो तो मै तुम्हें एक पैसा या एक रोटी दे सकता हूँ।' मैने कहा। _ 'ये तो मुझे दूसरे घरोंसे पेट भरने भरको मिल जाती हैं ।' उसने कहा और असन्तुष्ट होकर चला गया।
अगले दिन मालीने सूचना दी कि बगीचीमें कुछ फूलोंकी चोरी हुई है। मैंने पहरेकी व्यवस्था कर दी। किन्तु चोरीका क्रम न रुका । हर रात किसी समय कुछ फूल टूटकर गायब हो जाते । ____एक दिन मैंने उसी लड़केको बाज़ारमें देखा। सड़क किनारे बैठा वह फूलोंकी मालाएँ बना रहा था।
'तुम चोर हो' मैंने पास जाकर उसे पकड़ा। • on ___ 'बिलकुल नहीं बाबूजी, यह आप कैसी बात कहते हैं ! मैं तो भिखारी हूँ। भीखके पैसे बचाकर कुछ फूल खरीद लाता हूँ और मालाएं बनाकर उन्हें बेच देता हूँ। कुछ दिनों बाद मुझे भीख मांगनेकी ज़रूरत न रह जायगी। मुझे चोर बनानेका आपके पास कोई सबूत है ?' . बालकके स्वरमें कड़क थी। उसकी चोरीका मेरे पास कोई सबूत नहीं था। कई लोग हमारी बातचीत सुन रहे थे। ऐसी बे-सबूतकी बात कह