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मेरे कथागुरुका कहना है
और कहते-कहते वह देवी पुनः प्रस्तरकी निर्जीव प्रतिमा-मात्र रह गई !
मेरे कथागुरुका कहना है कि संसारका एक-तिहाई मानव-वर्ग अब भी उसी रूपदेवीका किसी प्रकट या अप्रकट रूपमे उपासक है; उसे अपनी उपासनाकी सफलताके क्षण बहुधा प्राप्त होते है, किन्तु संयोग-कामनाके रूपमें केवल अपनी विछोह-कल्पनाको ही बीचमें लाकर वह उन क्षणोंकी अनुभूतिसे वंचित रह जाता है।