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जड़ता, करुणा और बोध
जंगलमें वायु-सेवनके लिए जाकर मैं जहाँ कुछ देर बैठता हूँ, वहाँ एक दिन मैंने एक मरे हुए बैलका ढाँचा पड़ा पाया । गिद्धों और सियारोंने उसका मांस लगभग साफ़ कर दिया था। ___ 'यह कम्बख्त बैल भी मरनेके लिए आया तो यहाँ आया!' मैंने खीझकर कहा और आगे बढ़ गया।
दूसरे दिन मैं फिर उसी ओरसे निकला। हड्डियोंका ढाँचा उस दिन और भी साफ़ किया हुआ वही पड़ा था। पास ही मेरी दृष्टि एक गायपर पड़ी । वह वहीं खड़ी अपने बछड़ेको दूध पिला रही थी और बड़े प्यारसे उसे चाट रही थी।
पाससे गुजरते हुए एक चरवाहेने मुझे बताया कि वह मरा हुआ बैल इसी गायका सबसे पहला बछड़ा था ।
मैंने उस बछड़ेकी ओर देखा और फिर उस हड्डीके ढांचेकी ओर । एक दिन इस मरे हुए बैलको भी इस गायने ऐसे ही प्यार किया होगा ! मेरा हृदय एक अज्ञात पूर्ण करुणाकी वेदनासे पिघल उठा। जीवनकी यह गति ! जिसका एक दिन ऐसा प्यार-दुलार उसीकी एक दिन ऐसी दशा ! करुणा और निराशाके आवेगसे मेरे सामने अँधेरा-सा छा गया। मुझे ध्यान आया, पिछले दिन उस बैलके शवको देखकर मैंने कितनी जड़तापूर्ण बात सोची थी ! मैं कलतक कितना जड़हृदय था !
तीसरे दिन भी मैं यहीं पहुंचा । बैलकी हड्डियां वहीं पड़ी थीं। पास ही वह गाय खड़ो अपने नये बछड़ेको चाट रही थी । अचानक एक कुत्ता उसके ऊपर भौंकता हुआ झपटा। गाय पहले तो भागो, पर जब उसने देखा कि उसका बछड़ा पीछे ही छूट गया है तो वह मुड़कर खड़ी हो