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मेरे कथागुरुका कहना है
मेसे छाँटकर सात अरब मनुष्य रूपमे परिवर्तित करके, सात अरब नवनिर्मित मानवोंको असुरोके पक्ष मे खड़ा कर दिया; जब कि देवताओंके पक्ष में कुल वास्तविक मानवोंकी संख्या केवल तीन अरब ही थी ।
इसके पश्चात् असुरोंकी पहली बड़ी विजयके उपलक्ष्यमे जो बड़ा उत्सव समारोह हुआ उसमे शुक्राचार्यने पशुओको मनुष्योमे बदलनेका वह आश्चर्यजनक नुस्खा भी सबके सामने प्रकट कर दिया ! यह चतुःसूत्री नुस्खा बहुत सरल और इस प्रकार था .
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प्रथम सूत्र -- पशुका शारीरिक आकार मनुष्यके आकारमे बदलो । ( आकार बदलने की यह कला छोटेसे-छोटे असुरको भी आती थी )
द्वितीय सूत्र - पशु-हृदयके सातवें ( नोचेकी ओरसे चलकर ) पटल पर जो भयकी प्रवृत्ति है उसे सबसे भीतरी प्रथम पटलपर ले जाओ ।
तृतीय सूत्र -- पशु-हृदयके प्रथम ( सबसे निचले ) पटलपर जो छलकोशलका पुट है उसे ऊपर के सातवें पटलपर ले आओ ।
चतुर्थ सूत्र -- पशु-हृदयके छठे ( नीचे की ओरसे गिनकर ही ) पटलपर लोभ या आशाकी जो धारणा है उसे द्वितीय पटलपर ले आओ । और निस्सन्देह इस नुस्खेसे पशुका जो मनुष्य बना वह अत्यन्त शिष्ट, मृदुभाषी, दूसरेका गला चुपचाप काटने में निपुण और आजकी सभ्यता के अनुरूप एक पूर्ण सभ्य मनुष्य था ।
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इस कथा को कोई आजकी मनुष्य जातिका अनादर - अपमान न समझ बैठे, इसीके स्पष्टीकरणमे मेरे कथागुरुकी टिप्पणी है कि प्रस्तुत युगका मनुष्य उन वास्तविक मनुष्यों और पशुसे बनाये हुए मनुष्योंकी सम्मिलित सन्तान है और जो भी मनुष्य इस तथ्यको अपने भीतर देखकर स्वीकार करनेके लिए उद्यत हो जाता है वह किसी शुद्ध मानवीय विधानके अनुसार द्रुत गति साथ अपने शुद्ध मानवत्वकी ओर अग्रसर होने लगता है ।