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शीतल ज्वाला
रामगुप्तके प्रवचनोंकी चर्चा नगर-भरके नर-नारियोंकी जिह्वा पर थी।
चातुर्मासके लिए वह राज-गृहका निमन्त्रित अतिथि था। उसके दैनिक प्रवचनकी व्यवस्था राजोद्यानके विशाल मण्डपमें की गयी थी। राजकुल और प्रजावर्गके सभी व्यक्तियोंके लिए इस मण्डपके द्वार मुक्त थे।
उसकी वार्ताओंमें प्रेम-तत्त्वका निरूपण था। उसका प्रतिपादित प्रेम सागर-जैसा अगाध, पवन-जैसा अबाध, चन्द्रिका-जैसा शोतल और आकाशजैसा सर्वस्पर्शी एवं निरीह था । वासना, विवशता, उद्वेग और वेदनाका उसमें कोई स्थान नहीं था। ___ रामगुप्तके उपदेश गहन होते हुए भी सरल एवं सचित्र थे। प्रत्येक श्रोताके मनमें वे सहज ही उतर जाते थे। उसकी चुम्बक वाणीसे आकृष्ट श्रोताजन उतने समयके लिए प्रेमको उस परा, परम प्रशान्त चेतनामें स्वयंको स्नात अनुभव करने लगते थे।
किन्तु रामगुप्तका व्यक्तित्व उसके उपदेशोंसे भिन्न भी था। वह तरुण और असाधारण रूपवान् था। कामिनी-जनोंके लिए उसकी सहजस्नेहिल चेष्टाओंमें एक असाध्य, अनिवार्य निमन्त्रण भी था। उसका कथित प्रेम आकाश-जैसा निरीह और चन्द्रिका-जैसा शीतल था, किन्तु जिस प्रेमका उसने, एक वर्गविशेषमें, सृजन किया था वह झंझा-जैसा प्रताड़क और अग्नि-जैसा दाहक भी था ! युवतियोंका एक वर्ग उसके अन्तर्बाह्य सौन्दर्यपर मुग्ध, उसके लिए मन-ही-मन आकुल हो उठा था। ,
और उस दिनकी प्रवचन-सभा गहरे आश्चर्य और अनिर्वच आशङ्काके वातावरणमें विसर्जित हुई जिस दिन लोगोंने अपनी आँखों देख लिया कि