Book Title: Mere Katha Guru ka Kahna Hai Part 02
Author(s): Ravi
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 169
________________ बूचड़की कमाई बहुत वर्ष पहले की बात है, उस दिन मैने अपने नगर के बूचड़खाने का निरीक्षण किया । हज़ारसे ऊपर गायें और बकरियाँ जिन्होंने बुढ़ापेके कारण दूध देना बन्द या कम कर दिया था अलग-अलग पंक्तियोमे खड़ी थीं और उनके शरीरोंको काटनेवाली लोहेकी पैनी मशीनें उनके ऊपर झूल रही थीं । मशीन - युगकी यह साफ़-सुथरी और सुगम व्यवस्था देखकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई और बूचड़खानेके मालिकको मैने इसके लिए बधाई दी । पशुओं की पंक्तियोंके बीच घूमते हुए अचानक मेरी दृष्टि एक बूढ़ी गायपर पड़ी । वह मेरे एक पड़ोसी मित्रकी गाय रह चुकी थी और उसका दूध मैं भी अनेक बार पी चुका था । अचानक मैंने देखा कि मैं भी एक गाय हूँ और उसी गायकी बग़लमे मैं भी एक जंजीरके सहारे बँधा हूँ । सिरपर झूलती मृत्यु और पीड़ाके भयसे मैं काँप उठा । लेकिन एक देवतासे कुछ परिचय - मित्रतांकी राह देवताओंके दरबार में मेरी कुछ पहुँच थी । मैंने तुरन्त अपने मित्र देवदूतका आवाहन किया और उससे प्रार्थना की कि वह तुरन्त ही मेरी अरदास देवताओं तक पहुँचाकर इस बूचड़खानेकी मशीनोंको इसी क्षण नष्ट करा दे और यहाँके सभी पशु जब बाहर निकल जायँ तो इस इमारत को आग लगवा दे | मेरी प्रार्थनाका प्रभाव नहीं तो आप इसे संयोग ही समझ लीजिए, उस समय छतोंपर लटकती हुई पैनी मशीनें पशुओके शरीरों तक नहीं उतरीं । बूचड़खाने के कर्मचारियोंने कहा कि मशीनोको चलानेवाली बिजली बिगड़ गयी थी । C मैं पुनः अपने मानव शरीरमे लौट आया था और बूचड़खाने के १.१

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