Book Title: Mere Katha Guru ka Kahna Hai Part 02
Author(s): Ravi
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 143
________________ अमृतत्रयी १४३ गहन वनमें पहुँचकर युवराजने संकल्पपूर्वक एकनिष्ठ साधना की। उसकी साधना जगी। साधना-पथमें उसने विशुद्ध भूख, प्यास और कामकी त्रिदेवीका साक्षात्कार किया। ___ साधना पूर्ण होते ही एक तरुणी एक हाथमें ढाक-पत्रपर गेहूँकी दो रोटियां और दूसरेमें एक कटोरा जल लिये उसके सामने प्रकट हुई। युवराजने रोटियाँ खायों, जल पिया और फिर उस मुग्ध-नयना, अल्पवसना अनिन्द्य सुन्दरीको अपने बाहुओंमें समेटकर उसके अधरोंको चूम लिया। ___ युवराज अपने कर्तव्य-भागकी खोजमें सफल हो गया था। राज-नगरको लौटकर उसने राज्याभिषेक ग्रहण किया। राज्यासनपर बैठते ही उसने अपने राज-कालीन लक्ष्यकी घोषणा की 'धन-धान्य और वैभव-विलासकी विविधरूपा एवं कृत्रिमतामयी बाढ़ोंमें प्रजाजनकी विशुद्ध भूख, प्यास और कामकी प्रवृत्तियाँ डूब गयी हैं । विविध व्यंजनों और अतिमिश्रित पेयोंके बीच शुद्ध अन्न और निर्मल जलका तथा अतिरंजित यौवन-विलासके बीच निर्लिप्त चुम्बनका स्वाद मेरे स्वजन खो चुके हैं । विशुद्ध रोटी, निर्मल जल और निलिप्त चुम्बनके स्वाद और साधनकी अमृतत्रयी मुझे अपने सभी प्रजाजनके लिए अपने राज्यकालमें सुलभ करनी है।' . और इस कथापर मेरे कथागुरुकी टिप्पणी है कि नये राजाके नये अनुष्ठानमे सबसे बड़ी कठिनाई यही है कि वह समृद्ध देश ही नहीं, अपितु आजका 'सम्य' कहा जानेवाला सम्पूर्ण मानव-संसार उस अमृतत्रयोसे पहले दोके अतिमिश्रित अतिसंचयोंसे मुक्त होने तथा तीसरेकी समर्थ साधुताको स्वीकार करनेके लिए अभी तैयार नहीं है।

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