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जड़ता, करुणा और बोध
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गयी और कुत्तेको सींगसे उछालकर उसने दूर फेंक दिया । कुत्ता भौंकता हुआ उठकर भागा और कुछ देर बाद हड्डीके उस ढाँचेके पास बैठकर उसकी पसलियां चबाने लगा । गाय चुपचाप खड़ी उसे देखती और बीच-बीचमें अपने नये बछड़ेको चाटती रही ।
पिछले रात-दिनका चढ़ा हुआ करुणा और निराशाका भार मेरे हृदयसे एक-दम उतर गया। गायकी आँखें मुझसे कह रही थीं
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'किसी रूप या देहके मोहमें न अटको, केवल उसके जीवनको ही प्यार करो ! जीवन सदैव एक रूपमें बँधा नहीं रह सकता । जड़ता तो पूरा अन्धापन है ही, मोह-जनित करुणा भी एक परदा है । हड्डीके ढाँचेका कुछ नहीं बिगड़ सकता, क्योंकि वह संवेदना - होन है, और उसमें बसने वाले बछड़े का भी कुछ नहीं बिगड़ सकता । देखते नहीं, मेरा बछड़ा अब भी मेरे पास है !'