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मेरे कथागुरुका कहना है
हीरादिक रत्नोंकी तथा कुछ अन्य उपयोगी धातुओंकी खानें भी है । कुछ दिनोंके निवासमें ही इन सबका आभास पाकर मैंने राजाज्ञाका उल्लंघन करके भी यहाँ बसनेका निश्चय किया था । अब अपना अभीष्ट कार्य पूरा कर लेनेपर मैं अपने उस अपराधके निमित्त समुचित राज-दण्डके लिए स्वयं को महाराजके हाथों समर्पित करता हूँ ।'
'तुमने परम्परा के विरुद्ध चलकर राजाज्ञाका उल्लंघन अवश्य किया है, किन्तु अल्प और आक्रान्ताकी तुलना में वृहत् और उन्मुक्तके लिए किया है । तुम्हारे लिए उपयुक्त दण्ड यही है कि इस नये राज्यके महामंत्रित्वका पदभार तुम सम्हालो और मेरी तथा राज- संतति समेत समस्त प्रजाजनकी अशेष कृतज्ञताके युग-युग तक भाजन बने रहो ।' कहते-कहते राजसिंहासनसे उठकर राजाने इस अधिकारीको गलेसे लगा लिया ।
कहते हैं कि आक्रान्ता राजाके राज्यसे निकलकर इस राजाकी अधिकांश प्रजा इस नये प्रदेशमें आ बसी और सहस्रों वर्षो तक यह राज्य सभ्यता और संस्कृतिकी नई-नई दिशाओंमें फलता-फूलता रहा ।