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तृष्णाका खेल
एक निर्धन किसान एक बार राजाके दरबार में उपस्थित हुआ। उसके पास केवल एक बीघा खेत था। एक बीघेकी खेतीसे उसका निर्वाह बड़ी तंगीसे होता था। उसकी प्रार्थनापर राजाने उसके खेतसे मिला हुआ एक बीघा खेत उसे और दे दिया। किसानका निर्वाह अब सुगमतापूर्वक होने लगा। साथ ही उसकी समृद्धिकी तृष्णा भी बढ़ गयी।
कुछ वर्ष बाद किसान फिर राजाके दरबारमें उपस्थित हुआ। राजा अपनी दान-प्रवृत्तिके लिए प्रसिद्ध था। उसने अबकी बार बीस बीघा धरती उसे और दे दी, किन्तु यह आदेश साथ लगा दिया कि यदि कोई निर्धन ब्राह्मण पर्वके दिन उससे याचना करे तो एक बीघा खेत या उसके अन्नके दानका संकल्प अवश्य उसके नाम कर दे। यह धरती उसके दो बीघा खेत और गाँवसे दूर थी।
किसान राजासे यह आशातीत इतनी बड़ी भेंट पाकर बहुत प्रसन्न अपने गाँवको लौट आया। वह स्वयं व्रत, पूजा-पाठका बड़ा प्रेमी था और अपने परलोकके कल्याणके लिए ब्राह्मणोंका आशीर्वाद पानेको सदा लाला. यित रहता था।
पर गांवके उन बीस बीघोंकी खेतीका काम उसने अपने बेटेको सौंप दिया और गांवके दो बीघेका काम अपने हाथमें रखा।
पर्वोके दिन वह व्रत रखता था और देवालयमें जाकर पूजा-पाठ करता था। अगले पर्वके दिन देवालयसे घर लौटते समय एक निर्धन ब्राह्मण उसे मार्गमें मिल गया। किसानने बड़े प्रसन्न भावसे एक बीघा खेत उसे दान कर दिया । ब्राह्मणने भी अपने आशीर्वचनोंसे उसे नहला दिया।