Book Title: Mere Katha Guru ka Kahna Hai Part 02
Author(s): Ravi
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 140
________________ १४० मेरे कथागुरुका कहना है एकके बाद एक पर्व आते गये और याचक ब्राह्मणोंका क्रम भी किसी बार नहीं टूटा। तीन महीनेके भीतर किसानके दस बीघे खेत भेंट हो गये और ब्राह्मणोंके आशीर्वचनोंकी भी एक बड़ी पोट उसके परलोक-सुखके लिए बँध गयी। इसी बीच उसके पुत्रने सूचना दी कि नीलगायोंने खेतोंमें बड़ा उत्पात मचा रखा है और खेतीको हानि पहुँचा रही हैं। किसानने खेतोंकी रखवालोके लिए एक और व्यक्ति मजदूरीपर वहाँ लगा दिया । किसानके दानकी सूचना दूर गाँवोंमें भी पहुँच गयी थी। हर पर्वपर कोई-न-कोई ब्राह्मण किसी-न-किसी गाँवका उसकी राह या द्वारपर आ जाता और एक बीघा खेत पाकर असीसता हुआ लौट जाता। किसानने अब प्रयत्न करना चाहा कि पर्वके दिन कोई वैसा याचक उसके सामने न पड़े किन्तु यह न हो सका। उसके उन्नीस बीघे निकल गये । फ़सल कटनेके पहले दो पर्व अभी और शेष थे। उसने निश्चय किया कि अगले पर्वपर साँझ तक मन्दिरमें ही आँख मूंदे बैठा रहेगा और सूर्यास्त पीछे, दान-संकल्पको वेला समाप्त होनेपर ही बाहर निकलेगा, किन्तु उस दिन अचानक तीसरे पहर एक ब्राह्मणने मन्दिर-द्वारपर ही पहुंचकर टेर लगादी। किसानने मन-ही-मन बहुत दुःखी होकर अन्तिम बीसवाँ बीघा भी उसे दान कर दिया। ब्राह्मणने आशीर्वाद दिया, 'जा बेटा, भगवान् तुझे सदा सुखी और निश्चिन्त रखेगा !' जिस दिन फ़सल कटकर आनी थी, बीसों ब्राह्मण किसानके घर एकत्र थे। किसानका क्षोभ बढ़ा हुआ था। उसकी आंखोंमें वे काँटे-से चुभ रहे थे। निश्चित समयपर लदे हुए छकड़े खेतोंसे आकर उसके द्वारपर खड़े हो गये। किन्तु उनमें अनाजका एक दाना भी नहीं, सूखे पत्तोंके निचले भागका केवल भूसा ही था। नीलगायोंने एक भी दाना खेतोंमें नहीं छोड़ा था ।

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