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नारी वा नारायण
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गुरु परम सिद्ध थे । जलके ऊपर सिद्धासनमे अवस्थित होकर उन्होंने
कहा
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'वत्स, जिसके पीछे भागकर तू कुछ पाना चाहता है, वह चाहे नारी हो या नारायण बन्धनके अतिरिक्त तुझे और कुछ नही दे सकता । तेरे द्वारपर आई नारी मुक्त रहती तो वह तेरे लिए नारायणका प्रसाद थी, और द्वारपर आया नारायण यदि तेरे हाथ आ जाता तो वह नारीके वमन से अधिक कुछ न रहता । तेरे स्पर्शका बचाव मैंने तेरे हितके लिए ही किया है।'
इतना कह कर गुरु जलके गर्भ में अदृश्य हो गये ।