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मेरे कथागुरुका कहना है दोपहर बीते पत्नीने मेरे पलंगपर आकर बड़े प्यार-भरे स्वर में कहा'मैं जानती हूँ कि तुम्हारा मन किसी सुन्दरीमें अटक गया है । दुखी न हो, तुम्हारे मिलनमे मैं कोई बाधा न डालूंगी। तुम्हे सुखी देखकर ही मेरा भी सुख बढ़ेगा' उसका स्वर और भी तरल हो गया। वह कहती गई 'इस रात मैने एक और बड़ा अनहोना सपना देखा है। वे आँखें मेरी आँखोसे निकल ही नही रही है। सोच रही हूँ, वह कौन था और उसकी आँखोंका मतलब क्या था।' कहते-कहते उसने मेरे वक्षपर अपना सिर डाल दिया और उसकी आँखोंसे दो बूंद मेरे कन्धेपर टपक पड़े।
और उस क्षण अनायास ही, सम्भवतः पहली बार, मेरा-उसका गहरा प्यार हो गया।