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पति-पत्नी राजपुरोहितोंने राजकुमारका विवाह विधिवत् सम्पन्न किया। काम-से कमनीय युवराज और रति-सी रूपवती युवराज्ञीको राज-महिषियोंने आरती उतारी। . राजकुल क्या प्रजाजन, सभीका निर्विवाद मत था कि ऐसी अनिद्य जोड़ी युगानुयुगमें दूसरी नहीं देखी गई थी।
लौकिक रीत्याचारके अन्तमें नव-दम्पतिको राजपुरोहितोंने कुलदेवताके देवालयमें आशीषके लिए प्रस्तुत किया।
कुल-देव अपने आसनपर प्रकट हो गये। नव-दम्पतिपर उनकी दृष्टि पड़ी। पट-चीर-ग्रन्थिसे गुम्फित वर-वधू उनके सम्मुख नत-मस्तक उपस्थित थे।
'इस दम्पतिको देखकर मैं बहुत प्रसन्न हूँ' कुल-देवता ने कहा'किन्तु इनके इस पट-चीर-बन्धनका अभिप्राय क्या है ?'
प्रश्न कुल-पुरोहितोंको लक्ष्य कर किया गया था । ___'यह शास्त्रीय विधानकी एक नवीन संयोजना है कुलदेव । इसका संकेत है कि ये दोनों अब दो देह होते हुए भी एक-प्राण है, एकको इच्छाएँ, आकांक्षाएँ ही अब दूसरेको भी इच्छा-आकांक्षा है। ____ 'ऐसा है तब तो इनके पास एक-दूसरेको देने के लिए कुछ भी शेष नहीं रहेगा। यह वास्तवमें दो देहोंके सचल रहते भी उनमेंसे एक प्राणकी मृत्यु होगी । इनके सुख और समस्त मानवीय सम्पर्कोकी समृद्धिके लिए मेरा आशीष यही है कि यह बन्धन कभी न जुड़े।' ___ कहते हुए कुल-देवताने दम्पतिके ग्रन्धि-बन्धनपर एक तीक्ष्ण दृष्टि डाली और टोनोंके वस्त्र एक दूसरेसे मुक्त होकर अलग-अलग लटकने लगे।