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मेरे कथागुरुका कहना है
करनेका क्रम भी असुर-गुरुने प्रारम्भ कर दिया । उसको कथा पुराणविदित है।
आजको भोर अपने एक अनुपचारित व्रणके नीचे मुझे भी उसो अमृतका एक कण मिला है और तभी मेरे परम कृपालु महोपचारकने इतिहास-पुराणकी यह अबतक अलिखित, अति गुह्य किन्तु चिर सत्य कथा सुनायी है। कौन जाने जीवनमें घटित प्रत्येक व्रणका अभिप्राय ही यह हो कि बाह्य ओषधि द्वारा उसका उपचार करनेसे पहले उसके नीचे छलके परम जीवन-प्रद अमृत-बिन्दुको खोज लिया जाय ।